14 May, 2008

बच्चे का डीएनए तय करेगा मां का गुजारा भत्ता

पति-पत्नी के बीच गुजारे भत्ते को लेकर चल रही कानूनी लड़ाई में बच्चे के असली पिता का पता लगाने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट ने छह साल के बच्चे का डीएनए टेस्ट कराने का आदेश दिया है। भरी अदालत में पति ने यह कहकर सभी को चौंका दिया कि उसकी पत्नी जिस बच्चे की परवरिश के लिए उससे भत्ता मांग रही है, वह उसकी संतान नहीं है।
जस्टिस विपिन सांघी ने रोहिणी निवासी पति की याचिका पर बच्चे का एम्स में डीएनए टेस्ट कराने का आदेश दिया है। अदालत ने कहा कि पिता बच्चे की परवरिश की जिम्मेदारी से उसी सूरत में बच सकता है, अगर यह साबित हो जाए कि वह उसका वास्तविक पिता (बॉयोलजिकल फादर) नहीं है। इससे पहले मैजिस्ट्रेट ने बच्चे का डीएनए टेस्ट कराने की याचिका खारिज कर दी थी। पति ने अदालत में कहा कि उसकी पत्नी से शारीरिक संबंध नहीं हैं।
लिहाजा जनवरी 2001 में जन्मा बेटा उसका नहीं है। उसने अपनी पत्नी पर विवाहेत्तर संबंध का भी आरोप लगाया और कहा कि उसकी पत्नी के अपने जीजा से अवैध संबंध हैं। अदालत में पेश तथ्यों के अनुसार दोनों का विवाह सितंबर 2000 में हुआ था। लेकिन शादी के कुछ दिन बाद ही उनमें अनबन हो गई। पति ने आरोप लगाया कि उसकी पत्नी की एक शादी पहले भी हुई थी और उसके पूर्व पति की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई थी।
पहली शादी की बात उससे छुपाई गई। पहली शादी से उसकी पत्नी के पास एक बेटा भी है। मियां-बीवी जुलाई 2001 में अलग हो गए। पति द्वारा दायर याचिका में कहा गया कि अलग होते समय दोनों ने यह तय किया कि अपने सामाजिक स्तर को देखते हुए मामला अदालत में नहीं ले जाएंगे। लेकिन अगस्त 2006 में पत्नी ने सीआरपीसी की धारा 125 के तहत गुजारे भत्ते की अर्जी मैजिस्ट्रेट की अदालत में दायर की। जून 2007 में मैजिस्ट्रेट ने पति को पत्नी और बच्चे के रहन-सहन के लिए धनराशि देने का आदेश दिया।
हाई कोर्ट ने मैजिस्ट्रेट के आदेश को निरस्त कर दिया। एम्स के चिकित्सा अधीक्षक से कहा गया है कि खून के नमूने लेकर बच्चे का बॉयोलजिकल फादर तय किया जाए।
With Thanks from नवभारत टाइम्स
Source:-नवभारत टाइम्स 14 May 2008 P. 6 New Delhi

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